Wife Property Rights – भारत में संपत्ति को लेकर सबसे ज्यादा विवाद शादीशुदा रिश्तों में देखने को मिलते हैं। खासकर जब बात आती है पति की संपत्ति पर पत्नी के अधिकार की, तो मामला और भी पेचीदा हो जाता है। क्या पत्नी को पति की पूरी प्रॉपर्टी पर हक मिलता है या सिर्फ एक हिस्से पर? अगर पति ने वसीयत लिख रखी हो, तो क्या उस पर शर्तें लगाई जा सकती हैं? ऐसे तमाम सवालों पर अब सुप्रीम कोर्ट फिर से विचार कर रहा है।
पुराने केस ने फिर खड़ा किया बड़ा सवाल
यह मामला साल 1965 से जुड़ा है, जब एक व्यक्ति कंवर भान ने अपनी पत्नी को ज़मीन का एक टुकड़ा जिंदगीभर इस्तेमाल करने के लिए दिया। लेकिन साथ में ये भी कहा कि पत्नी की मृत्यु के बाद वो ज़मीन उनके वारिसों को वापस मिल जाएगी। बाद में पत्नी ने उस ज़मीन को बेच दिया। इसके बाद कंवर भान के बेटे और पोते ने कोर्ट में जाकर इस बिक्री को चुनौती दे दी।
निचली अदालत ने पत्नी के पक्ष में दिया फैसला
1977 में जब ये मामला निचली अदालत में पहुंचा तो कोर्ट ने पत्नी के हक में फैसला दिया। कोर्ट ने साफ कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14(1) के अनुसार अगर किसी महिला को कोई संपत्ति मिलती है, चाहे जैसे भी मिले, वो उसकी पूरी संपत्ति मानी जाएगी। यानी वो महिला उसे बेचना चाहे, किराए पर देना चाहे या फिर बच्चों को देना चाहे, सबकुछ उसके अधिकार में है।
लेकिन हाईकोर्ट ने कर दी असहमति
जब यह मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में पहुंचा तो वहां से अलग नजरिया सामने आया। हाईकोर्ट ने कहा कि अगर संपत्ति वसीयत या किसी शर्त के साथ दी गई है, तो उन शर्तों को मानना पड़ेगा। यानी पत्नी उस ज़मीन को पूरी तरह से अपनी नहीं मान सकती। इस बात ने कानूनी गलियारों में बड़ा विवाद खड़ा कर दिया और फिर मामला पहुंच गया सुप्रीम कोर्ट में।
अब सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच करेगी फैसला
9 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ये मामला बहुत महत्वपूर्ण है और इसका असर पूरे देश की करोड़ों महिलाओं पर पड़ेगा। इसलिए इसे बड़ी बेंच के पास भेज दिया गया है। कोर्ट का कहना है कि ये सिर्फ कानून की व्याख्या का मामला नहीं है, बल्कि महिलाओं के हक और उनके सशक्तिकरण से भी जुड़ा हुआ है।
कानून क्या कहता है?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 14(1) के तहत अगर महिला को कोई संपत्ति मिलती है, तो वह उसकी पूरी संपत्ति होती है, वह चाहे तो उसे बेच सकती है। लेकिन धारा 14(2) में कहा गया है कि अगर संपत्ति किसी वसीयत या दस्तावेज के ज़रिए कुछ शर्तों के साथ दी गई है, तो वो शर्तें माननी होंगी। बस, इन्हीं दो धाराओं के बीच का फर्क कोर्ट में विवाद का कारण बना हुआ है।
क्या पत्नी को हमेशा बराबर हिस्सा मिलता है?
सामान्य तौर पर, पति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पत्नी, बच्चे और माता-पिता के बीच बांटी जाती है। अगर पति ने कोई वसीयत नहीं लिखी है, तो पत्नी को उसका हिस्सा तो मिलेगा, लेकिन वह अकेली सारी संपत्ति की मालिक नहीं बनती। वहीं अगर वसीयत में उसका नाम नॉमिनी के रूप में लिखा गया है, तो उसे ज्यादा फायदा मिल सकता है। लेकिन अगर वसीयत में कुछ शर्तें जोड़ दी गई हों, तो फिर मामला उलझ जाता है।
महिलाओं के हक को लेकर अब भी है भ्रम
अभी भी कई महिलाएं ये नहीं जानतीं कि उन्हें अपने पति की प्रॉपर्टी में कितना हक है। खासकर ग्रामीण इलाकों में तो महिलाएं अपनी कानूनी स्थिति को लेकर बहुत कम जानकारी रखती हैं। ऐसे में अगर उन्हें कोई संपत्ति दी भी जाती है, तो वो डर या समाज के दबाव में उसका उपयोग नहीं कर पातीं।
कानूनी जानकारी और सामाजिक बदलाव की ज़रूरत
सिर्फ कोर्ट के फैसले से बदलाव नहीं होगा। असली बदलाव तब आएगा जब समाज महिलाओं को उनकी संपत्ति पर हक देना सीखेगा। बेटियों को शादी के बाद सिर्फ ससुराल की जिम्मेदारी नहीं बल्कि उनके कानूनी अधिकार भी बताए जाने चाहिए। परिवार को भी चाहिए कि वे बहुओं और बेटियों को उनका जायज हक दें।
क्या उम्मीद कर सकते हैं सुप्रीम कोर्ट से?
अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच पर हैं। ये फैसला सिर्फ एक केस का हल नहीं होगा, बल्कि इससे करोड़ों महिलाओं की स्थिति पर असर पड़ेगा। उम्मीद है कि कोर्ट ऐसा निर्णय देगा जो महिलाओं को मजबूती और बराबरी का दर्जा दिलाएगा।
अगर कोर्ट यह मान लेता है कि वसीयत में लगाई गई शर्तें मान्य नहीं हैं, तो महिलाओं को भविष्य में और मजबूती मिलेगी। लेकिन अगर शर्तों को वैध माना गया, तो महिलाओं के पास जो अधिकार हैं, वे सीमित हो जाएंगे। ऐसे में जरूरी है कि सभी महिलाएं अपने हक को जानें और जरूरत पड़ने पर कानूनी मदद लें।